शिक्षा का राजकारण
शिक्षा का राजकारण :
बीते कई सालो से मै प्रायवेट सेक्टर में टीचर का काम कर रहा हूँ | शिक्षा क्षेत्र में मेरा अनुभव का मेरे नौ साल बीत गए | यह क्षेत्र में विशेष रूचि रखने के कारण मैने शिक्षा क्षेत्र का परिक्षण भी किया | और मेरे अनुभव के नुसार मैंने जो कुछ अनुभव किया वह आज मै यहाँ व्यतीत करना चाहता हूँ | संभव है की सभी मेरे विचार एवं मतो से संमत नहीं होंगे | परन्तु यही शिक्षा क्षेत्र में मैंने अनुभव किया हुआ वास्तव है | यह बात मैंने अपने आसपास की और कई जगह की स्कुलो में अनुभव किया है | शिक्षा क्षेत्र यह एक पवित्र क्षेत्र माना जाता है: परन्तु क्या यह पवित्रता का मान रखा जाता है ? यह सोचनीय बात है | शिक्षा क्षेत्र में बहुत सारे बदल होते रहे है | इतने बदल होने के बावजूद भी कोई निश्चित परिवर्तन नहीं पाया गया | यह सब बाते ध्यान में रखे तो प्रश्न यह भी है की सच में बच्चो के भविष्य की चिंता है किसे ? क्या यह सारी बाते दिखावे की है ? यदि यह सच नहीं है तो शिक्षा क्षेत्र में रूचि रखने वाले विचारवंत एवं समाज घटकों ने जो योगदान दिया है वह अपने विचार और बदलाव का पुनर्मूल्यांकन करे | यही मेरी प्रार्थना है |
मैंने भी बहुत सोच कर स्कुल जोइन किया था | मुझे लगा था की मै पुरे देश की नहीं परन्तु मेरे अपने बच्चे का भविष्य को अलग मोड़ दे सकता हूँ | और सही दिशा में एक नया विचार की प्रेरणा दे कर गुणवत्ता की मात्रा बढ़ाना चाहता था | परन्तु धीरे धीरे समज आने लगा की यहाँ बच्चो की गुणवत्ता से बढ़कर स्कुलो अपनी फी, टीचरों को अपनी तनखा, वाली को अपने बच्चे के मार्क, क्वालिटी के बजे क्वांटिटी, सरकार को अपनी प्रशंसा, स्कुल की शिक्षा से बढ़कर अपनी प्रायवेट क्लासेस शिक्षा का महत्व ज्यादा मायने रखता है | यहाँ बच्चे सिर्फ परीक्षा पास होने के लिए ही परीक्षा देते है | नोकरी प्राप्त करना या तो डिग्री हासिल करना यही एक उद्दिष्ट साध्य करने के लिए सारे प्रयास कर रहा है | स्कुल के किताब की शिक्षा और जीवन बिताने के वक्त लगने वाली शिक्षा में बहुत अंतर है यह बात कोई समजने के लिए तैयार ही नहीं है | ईस बारे में गांधीजी भी कहते है की, “ जो मेरे स्कुल में पढाया जाता है, वह मेरे समाज में होता नहीं; और मेरे समाज में घटित होता है वह मेरे स्कुल में पढाया जाता नहीं |” कदाचित यही बात समाज को एक नई दिशा दे रही है | आजके समाज में जो अघटित हो रहा है इसे हमारी शिक्षा भी एक कारण है | यह वास्तव हम बार बार भूल जाते है | और फिर वही अपनी राजनीती की बात पर आ जाते है | शिक्षा क्षेत्र में चलने वाले सच समजने के लिए निचे दिए गए घटक नुसार वास्तव समजने की कोशिश करे | और हो सके तो निश्चित बदलाव की मन ही मन थान लों |
विद्यालयों :
स्वातंत्र्य पूर्व की बात करे तो आज शिक्षा का बहुत ही विस्तार हो गया है | विद्यालयों की संख्या बढ़ गयी है | परन्तु सच यह है की सिर्फ क्वांटिटी बढ़ी है क्वालिटी नहीं | गुणवत्ता के लिए तो आज भी हम स्वप्न ही देखते है | सरकारने बहुत सारे विद्यालयों का खाजगीकरण करने पर जोर दिया है | साथ कारण भी बताया है की खाजगीकरण से शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ेगी | परन्तु वास्तव यह है की खाजगीकरण से सिर्फ सरकार को टॅक्स की कमाई हुई और प्रायवेट स्कुलो को अपनी कमाई | कोरोना के काल में बहुत सरे स्कुलो ने तो टीचर और अपने स्टाफ को निकल दिया | बाकि स्कुलो ने 30 % से लेकर 50%, 75% पेमेंट किया | बाकि स्कुलो ने तो अपनी फिज में भी राहत दे दी | परन्तु जैसी ही स्कुल खुली तो तुरंत दुसरे शैक्षणिक वर्ष की फी बढ़ा दी | मतलब एक तरफ राहत दे कर पोलिटिक्स खेला गया और दूसरी तरफ वसूली भी | जब स्कुल फी माफ़ कर रही थी तो टीचरों को भी तो काटकर ही तनखा मिलती थी | मतलब स्कुलो को कोई भी ज्यादा नुकसान नहीं था | परन्तु बताया ऐसा गया की सबसे ज्यादा उसे ही नुकसान हुआ | ऐसी कई स्कुल है जिसमे तीन-चार सालो से कोई तनखा बधाई नहीं गई परन्तु बच्चे से फी बढ़ा दी गयी | और यह सरकार चुपचाप देखती रही | कोई भी स्कुल केवल ट्रस्टी पर नहीं चलती | वह चलती है तो शिक्षको की गुणवत्ता पर, उसकी मेहनत पर | परन्तु यह बात कोई भी समजने के कोशिश नहीं करते | स्कुलो में आज का वातावरण बहुत अलग सा है | गुणवत्ता के नाम पर क्वांटिटी बढाई जा रही है | बच्चो को और वाली को ज्यादा मार्क की लालच दिखाकर खुश किया जा रहा है | अपनी जेब भरने के लिए ऐसे कई सारे कारनामो स्कुल के अन्दर चलते है | जितनी स्कुल बहार से अच्छी दिखाई देती है उतनी अन्दर से है या नहीं यह एक सोचनीय बात है |
शिक्षक :
इस जगत का कोई भी पद का निर्माता एक गुरु है | विश्व में गुरु का स्थान सर्वोच्च है | परन्तु आज के शिक्षा के नुसार इसमें कई बदलाव हो चुके है | स्कुल में पढ़ाने से ज्यादा कई शिक्षको को अपनी ट्यूशन क्लास में पढ़ाना ज्यादा पसंद है | परन्तु स्कुल इसलिए जॉइन है की उस स्कुल से बच्चे मिल सके | कई स्कुल तो क्लास वालो से कमीशन भी लेती है और बच्चे ट्यूशन के लिए भेजते है | स्कुल में होने वाले पेपर पहले ही क्लास में बताया जाता है | उसके बाद स्कुल में पेपर होते है | और उनके माता-पिता को बोला जाता है की हमरे स्कुल / क्लास में आने वाले बच्चे को देखो कितना ज्यादा मार्क्स मिलते है | स्कुल के प्रिंसिपल ही इसमें सामिल होने के कारण कोई बात इधर उधर नहीं जाती | क्लास के बच्चे का पेपर भी अलग ढंग से चेक होते है | बात स्कुल तक सिमित नहीं है | बोर्ड के पेपर में भी यह क्लास / स्कुल सिम्बोल देते है ताकी अपने पेपर पहचान सके | पेपर में पढ़ाने वाले शिक्षको का नाम तक होता है | बच्चे भी खुश है क्योंकि बिना ज्यादा मेहनत मनचाहे मार्क मिलते है | इसलिए ऐसे स्कुल / क्लास में बहुत भीड़ भी होती है | परन्तु वास्तव यह है की यह सब सिर्फ उनके पैसो से मतलब रखते है | आगे अपने बच्चे का भविष्य का क्या ? यह कभी अपने सोचा ही नहीं होगा | बच्चे को अपने तरफ करना, जो क्लास में नहीं है या जिसका अलग क्लास हो उसके बारे में बच्चे के मन में अलग पहचान करना, उनको स्कुलो / क्लास से निकलने कोई पूरी कोशिश करना आदि कारनामो का प्रयास भी किया जाता है | जो शिक्षक अपने मन से पढ़ने का प्रयास करता है, जो शिक्षक अपने कर्तव्य को पूरी कोशिश से निभाता है उसे यह क्लास / स्कुल के शिक्षक जिसके हात में सत्ता है वह मानसिक और शारीरिक तकलीफ दे कर तोड़ने का प्रयास करते है | जिससे उसके मार्ग की बाधा कम हो जाए | कभी उसके कार्य का वखान नहीं करेंगे, कभी उसे प्रेरणा नहीं देंगे परन्तु ऐसे शिक्षको को पीछे जरुर खिचेंग | समाज की यही वास्तवता है; “लोगो लगता है आप प्रगति करे, परन्तु वह यह भी ध्यान रखते है की आप उनके आगे नहीं जाना चाहिए |” मेरे विचार से ऐसी शिक्षा निति जब तक चोरी छुपी चल रही है तब तक कोई वदलाव शिक्षानीति से अपेक्षित रखना दुर्लक्षित है |
पेरेंट्स :
शिक्षा और बच्चे के बिच एक कड़ीरूप बच्चे के पेरेंट्स होते है | परन्तु आज माँ-बाप को अपने बच्चे के मार्क ज्यादा प्यारे है | वह अपने बच्चे के मार्क एकदूसरे से तोलकर देखते है | परन्तु अपनी बच्चे की गुणवत्ता कभी नहीं तोलते | प्रायवेट स्कुल में हम इसलिए ही पढ़ा रहे है ऐसा बहुत सारे पेरेंट्स का कहना होता है | वास्तवता का ज्ञान ऐसे लोगो को कैसे दे यही समज नहीं आता | पेरेंट्स के ऐसे विचार ही बच्चे को आत्महत्या जैसे परिणामो तक पहुंचाते है | कई बच्चे को हर एक परीक्षा अपनी जिंदगी की आखरी परीक्षा लगती है | वास्तव में यह बिलकुल भी सच नहीं है | पेरेंट्स का अपने बच्चे के प्रति बहुत सारा प्यार बढ़ता जा रहा है | अपने बच्चे की झूठी कहानी भी उसे सच लगती है और न जानते ही उस बच्च्चे के सामने शिक्षक को अपना अभिप्राय सुनाकर चले जाते है | वास्तव में ऐसे पेरेंट्स अपने बच्चे के गलतियों को बढ़ाते है जो भविष्य में घातक हो सकता है | जिसे पढ़ना- लिखना भी नहीं आता है वह पेरेंट्स भी एक समाज के आदर्श समजा जाने वाले शिक्षक के प्रति अनचाहे बर्ताव करते है | शिक्षा का मतलब सिर्फ डिग्री प्राप्त करना नहीं है | वास्तव में एक अच्छा आदमी बनाना भी शिक्षा का सही मतलब है | आप ने हजारो डिग्रिया प्राप्त कर ली परन्तु आपको आदमी ने आदमी के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए यह नहीं आता है तो वह डिग्रिय कुछ काम की नहीं है | यह बात हर पेरेंट्स ने अपने बच्चे को समजाना चाहिए | शिक्षक का स्थान समाज में जो कम होता जा रहा है; उसे पुनर्स्थापित करने के लिए प्रत्येक समाज घटक को विचार करना चाहिए |
विद्यार्थी :
आज विद्यार्थी की व्याख्या में बैठने वाले छात्र बहुत कम दिखाई देते है | एक शिक्षक के प्रति जो आदर होता है वह दिनप्रतिदिन कम होता जा रहा है | बच्चे सिर्फ अपने पढाई / मार्क्स के अतिरित्क कुछ भी सबंध प्रस्थापित करना नहीं चाहते है | विद्यार्थी-शिक्षक का एक आदर्श नाता आजके बचे और शिक्षक निर्माण करने में असफल रहे है | विद्यार्थी को जैसे बताया गे वैसे ही वह बर्ताव करते है | इसलिए बच्चे उसी वातावरण में बढ़ने चाहिए जो उसके लिए उपयुक्त है | परन्तु निजी स्कुलो में यह सब बाते किताबो में बैंड ह जाती है | आजकी की शिक्षा सिर्फ पैसे से टोली जाती है | वास्तव सिर्फ इतना है की बच्चे को किसी भी प्रकार पास करना है और उसकी टक्के की रैंक बढानी है | विद्यार्थियो को भी अपनी वास्तवता जानने की कोई आवश्यकता नहीं लगती | क्योंकि वह एक अंधे प्राणी के जैसे है | जिसे सच और झूठ का कोई फर्क नहीं दिखाई देता | और जो उसे समजता है उसकी बात मानने का मन उसका नहीं होता | इसी बात से समाज में सारे स्कुलो की परीक्षा पास और डिग्री वाले तो मिलेंगे परन्तु एक भी शिक्षित नहीं मिलेगा | यही वास्तवता हमें समझनी होगी |
परीक्षा पध्दती:
परीक्षा के कई सारे स्वरुप आज देखने के लिए मिलते है | प्रत्येक स्कुलो की अलग अलग पधाद्ती दिखाई देती है | मैंने तो कई स्कुलो में यह भी देखा है की शिक्षक बच्चे के पेपर लिखते है | टीचर परिक्षाखंड में आकर बच्चे को उत्तर बताते है | और वही बच्चे समाज में जाकर हसी के साथ अपने कारनामो का वखान करते है | कई स्कुल के पेपर तो पहले से ही बच्चे को पता होते है | कई स्कुलो में असाइनमेंट के नाम पर प्रश्न लिखकर देते है | वही पढ़ने के लिए बोला जाता है | बच्चे वही पठन करके पुरे मार्क हासिल करते है | इससे बच्चो को पुरे मार्क मिलने की ख़ुशी और स्कुलो/ क्लास को अपनी आमदनी बढ़ने की, प्रशंसा की ख़ुशी तो मिल जाती है परन्तु आगे जाकर ऐसे बच्चो का भविष्य क्या ? क्या ऐसी पध्दति से बच्चे संकुचित नहीं होंगे ? क्या उसमे सही मायने में शिक्षा का मूल्य बोया जायेगा ? विद्यार्थी को सर्वंकष अभ्यास करने की आदत नहीं रहेगी | और आगे जाकर उसका भविष्य एक मिटटी के सामान होगा | इसलिए आज ही एस बातपर विचार करना जरुरी है |
मिडिया :
समय समय की बात है | मिडिया अपना काम और कर्तव्य दोनों जानती थी | परन्तु आज की मिडिया बिक चुकी है | दुनिया की हर ताकद जहाँ खत्म होती है, वाही से कलम अपना तकाद दिखाना शुरू करती है | यह कलम की ताकद आज दुसरे के अधीन हो गई है | जितना बोला गया और जितना दिखाया गया उतना ही मिडिया के माध्यम से लोगो तक पहुँचता है | स्कुलो की बात भी मिडिया में उतनी ही दिखाई जाती है जितनी स्कुलो के ट्रस्टी और कोई भी ऑथराइझ व्यक्ति चाहते है | हा एक ऐसे भी मौके आते है जहा मिडिया दिखाती है की हम वास्तव दिखने का प्रयास करते है | उसका भी एक वास्तव छुपा होता है | जहाँ मनचाह पैसा नहीं मिला वही की बात आगे आती है बाकि नहीं | विद्यार्थी के जीवन में भी यह मीडया महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है | उसके चरित्र, संस्कार एवं शिक्षा और भविष्य अदि सब वह विद्यार्थी मिडिया पर क्या देखने में व्यतीत करता है उसपर निर्भय करता है | इसलिए बच्चो पर ध्यान देना बहुत जरुरी है | उसके शिक्षा के साथ उसके विचार और आचार पर भी पेरेंट्स ध्यान दे तो सही दिशा में उसका विकास करने में मदद होगी |
ऐसे कई सरे बाते है जिसपर विचार करना जरुरी है | एक गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा चाहते हो तो यह सब बाते दूर होना जरुरी है | यह मेरी चर्चा विचारना से आपको सही और गलत का आभास तो हुआ होगा | परन्तु इसबात पर सच में विचार भी कीजिये | और गुणवत्तापूर्ण समाज बनाने में आगे आकार मदद कीजिये | एक सही दिशा में चलने का प्रयास हमें करना चाहिए | यही अपेक्षा के साथ धन्यवाद !
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- लेखन-
योगेश आर. जाधव सर
[शिक्षक, लेखक, कवी, ब्लॉग राईटर ]
नोंद : यह लेख सिर्फ विचार करने या परिवर्तन लाने हेतु लिखा गया है | ईस बात का किसी भी राजनीती या क़ानूनी कार्य हेतु उपयोग करना प्रतिबंधित है | केवल वास्तविकता क्या है यह जानने की कोशिश हमे करनी चाहिए | और सही दिशा में परिवर्तन करना अपेक्षित है |
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